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गुरुवार, 4 जुलाई 2019

प्रत्यर्पण विधेयक

 प्रत्यर्पण विधेयक -

हांगकांग में  लाखों लोग सड़क पर उतरकर सरकार का विरोध कर रहे है। यह विरोध प्रदर्शन विवादित प्रत्यर्पण बिल के कारण हो रहे है

 क्या है  यह कानून ?

इस कानून के आधार पर यदि कोई व्यक्ति अपराध करके हांगकांग आ जाता है तो उसे जाँच प्रक्रिया हेतु चीन 
भेज  दिया  जाता है।  हांगकांग की सरकार इस कानून में संशोधन के लिये फरवरी में प्रस्ताव लाई थी।  कानून में संशोधन प्रस्ताव एक घटना के बाद लाया गया।  जिसमे एक व्यक्ति ने ताईवान में अपनी प्रेमिका की कथित तौर पर हत्या कर दी और हांगकांग  वापस आ गया। 
                           यदि हॉंगकॉंग की बात करे तो यह एक  स्वायत द्वीप है, चीन इसे अपने संप्रभु  राज्य का हिस्सा मानता है, वही हांगकांग की ताईवान के साथ कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है।  जिसके कारण हत्या के मुक़दमे के लिए उस व्यक्ति को ताईवान भेजना मुश्किल है यदि यह कानून पास हो जाता है तो इससे चीन को उन क्षेत्रो में संदिग्धों को प्रत्यर्पित करने की अनुमति मिल जाएगी, जिनके साथ हांगकांग के समझौते नहीं है। अगर ये कानून कभी पास होता है तो हॉंकॉंग के लोगों पर चीन का कानून लागू हो जायेगा। जिसके बाद चीन मनमाने ढंग से लोगों को हिरासत में ले लेगा और उन्हें यातनाये देगा। 

अम्ब्रेला मूवमेंट -

हांगकांग में वर्ष 2014 में चीन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ और लोकतंत्र के समर्थन में 79 दिनों तक बड़े प्रदर्शन हुए थे। इस आंदोलन के तीन नेताओ समाजशास्त्र के प्रोफ़ेसर चैन किन मन, कानून के प्रोफ़ेसर बेनी ताई और चू यू मिंग समेत नौ लोगों के खिलाफ वेस्ट कोवलून कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई।  उनके समर्थन में 100 से अधिक लोग कोर्ट के बाहर जमा थे।  सभी के हाथों में पीले रंग की छतरी थी जो अम्ब्रेला आंदोलन के नाम से चर्चित हुआ। 

हिस्ट्री - 

बात 1997 की है जब हांगकांग को चीन के हवाले कर दिया गया था, उस वक्त बीजिंग ने 'एक देश -दो व्यवस्था ' की अवधारणा के तहत कम से कम 2047 तक लोगों की स्वतंत्रता और अपनी क़ानूनी व्यवस्था को बनाये रखने की गारंटी दी थी।  लेकिन ऐसा ज्यादा समय तक नहीं हुआ 
                          हांगकांग में 2014 में 79 दिनों तक चले 'अम्ब्रेला मूवमेंट' के बाद चीनी सरकार ने लोकतंत्र का समर्थन करने वाले लोगों पर जमकर कारवाही की, इस आंदोलन के समय चीन की सरकार से कोई सहमति नहीं बन पाई थी विरोध प्रदर्शन करने वाले लोगों को जेल में डाला गया और आजादी का समर्थन करने वाली एक पार्टी पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था।  


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